उद्धार क्या है?

उद्धार क्या है?

 

प्रभु यीशु एक उपदेश देते हैं

 

परमेश्वर का उद्धार मनुष्यों द्वारा आपस में एक-दूसरे को बचाने से अलग है; यह अमीरों द्वारा गरीबों को दी जाने वाली धन-सम्बन्धी राहत नहीं है, यह डॉक्टरों द्वारा रोगियों पर किया गया कार्य जैसे कि घायलों का इलाज और मरने वालों को बचाना नहीं है, और यह धर्मार्थ संगठनों या समाज-सेवी लोगों का कर्म नहीं है। परमेश्वर का उद्धार मनुष्य की पतित आत्माओं को बचाने के लिए तैयार किया जाता है और उसके उद्धार की संपूर्णता में सत्य, मार्ग और जीवन शामिल है। जब हम उद्धार प्राप्त कर लेते हैं, उसके बाद दर्द, आँसू या दुःख और नहीं रह जाते हैं, न ही हमारे परिवारों में, हमारे अध्ययन में, हमारे काम और हमारे जीवन में बेबसी की कोई भावना होती है। हमारा जीवन प्रकाश और खुशी से भर जाता है; हम अधिक उद्देश्य और अर्थ के साथ जीते हैं, और हम परमेश्वर के वादों और आशीषों के भीतर जीते हैं।

 

एक जीवनकाल में, परमेश्वर हमें बचने के लिए कई अवसर देता है, लेकिन अगर हम परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें पहले परमेश्वर के उद्धार को जानना चाहिए, अन्यथा हम इसे प्राप्त करने का अवसर खो देंगे। कुछ लोग कहते हैं, "अगर हम इसे गवाँ देते हैं, तो क्या? यह कोई बड़ी बात नहीं है।" लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने का मौका चूकना, एक अच्छा भोजन खाने का अवसर खोने जैसा, या ट्रेन छूट जाने जैसा नहीं है, यह अध्ययन या रोजगार के अवसर को खोने जैसा नहीं है। परमेश्वर का उद्धार पाने के अपने अवसर को खोना, एक जलती हुई इमारत में फंसने और अग्निशामक दल द्वारा समय रहते बचाया जाने के अपने अवसर को खो देने जैसा है। इसलिए, परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने के अपने मौके को खोना अविश्वसनीय रूप से अफसोसजनक और विलाप करने योग्य है। परमेश्वर के उद्धार को जानना और परमेश्वर के उद्धार को पाना बहुत महत्वपूर्ण है। चूँकि वे इतने महत्वपूर्ण हैं, इसलिए परमेश्वर के कार्य से अब हम धीरे-धीरे सीखेंगे कि परमेश्वर का उद्धार क्या है

 

व्यवस्था के युग में परमेश्वर द्वारा मनुष्य के लिए तैयार किया गया उद्धार

शुरुआत में, आदम और हव्वा को अदन की वाटिका से खदेड़ दिया गया था, और वे यह नहीं समझते थे कि उन्हें किस प्रकार जीना है या किस प्रकार परमेश्वर का सम्मान या परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करना है। इसके बाद, पृथ्वी हिंसा, व्यभिचार, मारकाट आदि से भर गई, फिर कई सौ सालों के बाद दुनिया बाढ़ द्वारा नष्ट कर दी गयी, तब भी लोगों को यह नहीं पता था कि उन्हें कैसे जीना है या उन्हें परमेश्वर की आराधना कैसे करनी चाहिए। और इसलिए, परमेश्वर ने मनुष्य तक अपनी आज्ञाओं और व्यवस्थाओं की घोषणा करने के लिए मूसा का इस्तेमाल किया, जैसे कि सब्त को रखना, अपने माता-पिता का सम्मान करना, और यह भी कि किसी प्रकार की मूर्तिपूजा, व्यभिचार या चोरी नहीं होनी चाहिए। बलिदानों के चढ़ावे, भोजन ग्रहण करने, चोरी करने पर मुआवज़े के बारे में भी नियम थे और मवेशियों और भेड़ों को मारने के बारे में नियम थे, इत्यादि। इस तरह, लोग जो भी करते थे, उसमें उनके पास अपने कार्यों को निर्देशित करने के लिए सिद्धांत थे। जब लोग परमेश्वर के नियमों और व्यवस्थाओं का अपमान करते थे, तो उन्हें दंडित किया जाता था। लेकिन अगर वे परमेश्वर को चढ़ावा देते, पश्चाताप करते और फिर से अपने पापों को करने से बचते थे, तो परमेश्वर उन्हें उनके पाप कर्मों से मुक्त कर देता था। यहोवा ने अपनी व्यवस्थाओं की आज्ञाओं और नियमों का उपयोग मनुष्य को मर्यादा में रखने के लिए किया, और चूँकि मनुष्य यहोवा के वचनों को सुनते थे, उसकी आज्ञाओं और व्यवस्थाओं को बनाए रखते थे, इसलिए वे परमेश्वर द्वारा संरक्षित थे, और उन्होंने परमेश्वर के व्यवस्था के युग के उद्धार को प्राप्त किया।

 

अनुग्रह के युग में परमेश्वर द्वारा मनुष्य के लिए तैयार किया गया उद्धार

 

व्यवस्था के युग का अंत आते आते, मनुष्य अधिकाधिक पतित होते जा रहे थे और वे अब व्यवस्था और आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे। उन्होंने कई ऐसे काम किए जो परमेश्वर को नाराज़ करते थे, जैसे कि मूर्ति पूजा और व्यभिचार में संलग्न होना, दुष्ट योजनाएं बनाना, धोखा देना, छल करना, चोरी करना, धन लूटना, गबन करना, आदि, और यहाँ तक कि परमेश्वर को लंगड़े और अंधे कबूतरों, गायों और भेड़ों की बलि देना, और इस कारण परमेश्वर उनसे घृणा करता था। जैसा कि यिर्मयाह 14:10 में लिखा है, "यहोवा ने इन लोगों के विषय यों कहा: 'इनको ऐसा भटकना अच्छा लगता है; ये कुकर्म में चलने से नहीं रुके; इसलिये यहोवा इन से प्रसन्न नहीं है, वह इनका अधर्म स्मरण करेगा और उनके पाप का दण्ड देगा।'"और फिर भी परमेश्वर ने नहीं चाहा कि मानवजाति के सभी लोगों को उसकी व्यवस्थाओं द्वारा मृत्युदंड दिया जाए। इसलिए उसने मनुष्य के पुत्र—प्रभु यीशु—के रूप में देहधारण किया और एक बार फिर मानवजाति के लिए एक रास्ता खोला, व्यवस्था के युग का अंत कर अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य की शुरुआत की। प्रभु यीशु जहाँ भी गया, वहाँ उसने अपने सुसमाचार का प्रचार किया, बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को बाहर निकाला, मनुष्य पर बहुतायत से अनुग्रह की वर्षा की और उन्हें उनके पापों की क्षमा प्रदान की, ताकि मनुष्य के पापों को पूरी तरह से क्षमा किया जा सके। प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था, इस प्रकार वो मनुष्य की अनन्त पाप बलि बन गया और उसने अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य को पूरा किया। अगर हम प्रभु यीशु के उद्धार को स्वीकार करते, उसके नाम से प्रार्थना करते, उसके समक्ष अपने पापों को स्वीकार करते और पश्चाताप करते, तो हमारे पापों को क्षमा किया जा सकता था और व्यवस्थाओं का अपमान के लिए अब हमें दोषी नहीं ठहराया जाना था या मौत की सजा नहीं दी जानी थी। यह अनुग्रह के युग में मनुष्य के लिए तैयार किया गया परमेश्वर का उद्धार था।

 

अंत के दिनों में मनुष्य के लिए जो उद्धार परमेश्वर तैयार करता है

 

बाइबल में यह अभिलिखित है, "जिनकी रक्षा परमेश्‍वर की सामर्थ्य से विश्‍वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आनेवाले समय में प्रगट होनेवाली है, की जाती है" (1 पतरस 1:5)।

 

"वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा" (इब्रानियों 9:28)।

 

"इस कारण अपनी अपनी बुद्धि की कमर बाँधकर, और सचेत रहकर, उस अनुग्रह की पूरी आशा रखो जो यीशु मसीह के प्रगट होने के समय तुम्हें मिलनेवाला है" (1 पतरस 1:13)। एक किताब में यह भी लिखा है कि "परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से मनुष्य के पापों को क्षमा किया गया था, परन्तु मनुष्य पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीवन बिताता रहा। वैसे तो, मनुष्य को भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से अवश्य पूरी तरह से बचाया जाना चाहिए ताकि मनुष्य का पापी स्वभाव पूरी तरह से दूर किया जाए और फिर कभी विकसित न हो, इस प्रकार मनुष्य के स्वभाव को बदले जाने की अनुमति दी जाए। इसके लिए मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह जीवन में उन्नति के पथ को, जीवन के मार्ग को, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझे। साथ ही इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है ताकि मनुष्य के स्वभाव को धीरे-धीरे बदला जा सके और वह प्रकाश की चमक में जीवन जी सके, और वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सभी चीज़ों को कर सके, और भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके, और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, उसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा।"

 

प्रभु यीशु ने हमें छुटकारा दिलाया और हमारे पापों को क्षमायोग्य बनाया। लेकिन मनुष्य की पापी प्रकृति बनी रही, और हमारे भ्रष्ट स्वभाव हमारे भीतर गहरी जड़ें जमाए रहे, जैसे कि अभिमानी और घमंडी होना, स्वार्थी और घृणित होना, कुटिल और धोखेबाज होना, और केवल मुनाफा कमाने पर आमदा होना, आदि। चूँकि हम इन भ्रष्ट स्वभावों को धारण करते हैं इसी कारण हम अपने दोस्तों के साथ बहस कर सकते हैं, एक दूसरे पर संदेह कर सकते हैं, प्रसिद्धि और धन के लिए एक दूसरे के खिलाफ गुप्त रूप से साजिश रच सकते हैं, और हम अपने और अपने परिवार जनों के बीच विश्वास भी खो सकते हैं। जब बीमारी और विपत्ति का क्लेश हम पर पड़ता है, तो हम परमेश्वर को दोष देते हैं, उसे गलत समझते हैं। हम एक ऐसा जीवन जीते हैं जिसके तहत हम दिन में पाप करते हैं और शाम को उसे स्वीकारते हैं। प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: "मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है" (यूहन्ना 8:34-35)। परमेश्वर पवित्र है और किसी भी कलंकित व्यक्ति को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश की आज्ञा नहीं है। इसलिए, हमें उद्धार के एक अगले चरण की आवश्यकता है ताकि हमारे भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध किये जा सकें और हम परमेश्वर द्वारा पूरी तरह बचाए जा सकें। प्रभु यीशु ने कहा है, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। परमेश्वर ने हमें पहले ही स्पष्ट रूप से बता दिया है कि अंतिम दिनों में सत्य का पवित्र आत्मा, सभी सत्यों में हमारा मार्गदर्शन करने और सभी रहस्यों को उजागर करने के लिए आएगा। यदि हम परमेश्वर की प्रशंसा अर्जित करना चाहते हैं, तो हमें अंतिम दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करना होगा, तभी हम उस उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं जिसे परमेश्वर ने पूर्ण रूप से हमारे लिए तैयार किया है! इसलिए, केवल परमेश्वर की वाणी को ध्यान से सुनने के द्वारा ही हम प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाएंगे और अंतिम दिनों के परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त कर पाएंगे!

 

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