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मुझे परमेश्‍वर के लिंग भेद के विषय में एक नई समझ मिली

फ़िलीपीन्स निवासी 'वेई ना' द्वारा

 

प्‍यारे भाइयो और बहनो, में वेई ना हूँ और मैं आपको बताना चाहती कि मैंने प्रभु यीशु की वापसी का स्‍वागत कैसे किया। प्रभु में अपने कई भाई बहनों की तरह ही, मेरे सबसे बड़ी इच्‍छा यह थी कि प्रभु आएँ और मुझे स्‍वर्ग के राज्‍य में आरोहित करें। तब भी, हाल ही के वर्षों में, मैंने यह महसूस किया कि मैं प्रभु से बहुत दूर थी; मैं कलीसिया में आराधना करते समय उनकी उपस्थिति का महसूस नहीं कर पा रही थी, और घर पर बाइबल पढ़ते समय सुस्‍ती अनुभव करती थी। ऐसी किसी कलीसिया को पाने के लिए जहाँ पवित्र आत्‍मा का कार्य हो, मैं एक-के-बाद-एक कई कलीसियाओं में गई, लेकिन वहाँ के पादरियों के उपदेश उन्‍हीं पुरानी बातों से भरे पड़े थे—बाइबल की जानकारी और दर्शनसिद्धांत—जो मेरे आध्‍यात्मिक जीवन को जीवनाधार देने में असफल रहे। इस कारण मैं खोई हुई, अंदर से खाली और अकेली रह गई। इसलिए, मैंने परमेश्‍वर से बारम्‍बार प्रार्थना की।

 

उसके बाद, एक दिन, गूगल पर मेरी नज़र सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया की वेबसाईट पर पड़ी। उत्‍सुकतावश, मैंने उस वेबसाईट को खोला और पाया की उस पर मौजूदा जानकारी अतिसमृद्ध थी, जिसमें परमेश्‍वर के वचन, भजन, फिल्‍में, एम वी, और ऐसी कई सामग्री थी। उसने वाकई मेरी आँखें खोल दी। खास तौर पर, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे बहुत लाभ पहुँचाया और उत्‍साहित किया; जितना अधिक मैंने इन वचनों को पढ़ा, उतना ही अधिक मैं प्रेरित होती गई। इसलिए, आने वाले कई दिनों में, जैसे ही मुझे समय मिलता मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ती, जिससे मैंने कई सत्‍य समझे जो मैंने कभी अपनी कलीसिया में नहीं सुने थे। इसलिए, प्रभु के साथ मेरा रिश्‍ता धीरे-धीरे घनिष्‍ठ होता गया, और मैं सदा पवित्रात्‍मा के द्वारा द्रवित होती रही, और अपने हृदय में पूरी तरह परिपूर्ण महसूस करती रही। मैं उस भावना में खो गई, जब मैंने प्रभु में पहले विश्‍वास करना प्रारंभ किया था।

 

वेबसाईट पर दो सप्‍ताह तक जाँच करने के बाद

 

वेबसाईट पर दो सप्‍ताह तक जाँच करने के बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया से लाईव चैट के माध्‍यम से सम्‍पर्क स्‍थापित किया। इसके बाद, इस कलीसिया के भाई-बहन अक्‍सर मुझे प्रभु की वापसी का तरीका, बुद्धिमान कुवाँरियाँ क्‍या हैं, परमेश्‍वर की वाणी को कैसे पहचानें, आदि। साथ ही, उन्‍होंने मुझे यह समझाया कि क्‍यों धार्मिक कलीसिया इतने उजाड़ हो चुके हैं। उनकी सहभागिता सुनने के बाद, मुझे यह पता चला कि चूँकि परमेश्‍वर ने कुछ नया कार्य किया है, पवित्रात्‍मा का कार्य परिवर्तित हो चुका है, और केवल परमेश्‍वर के पदचिन्‍हों पर चल कर और परमेश्‍वर के नए वचनों को पढ़ कर ही हम जीवन के जल से आपूर्तित हो सकते हैं। मैं यह भी समझ गई कि व्‍यवस्‍था के युग में क्‍यों आत्‍मा के माध्‍यम से और अनुग्रह के युग तथा राज्‍य के युग में क्‍यों देहधारी शरीर के रूप में कार्य किया था। आदि इत्‍यादि। इस सहभागिता ने मेरे कई प्रश्‍नों का समाधान कर दिया। उनसे कई मुलाकातों के बाद, मैंने खुद को उस घुमक्‍कड़ की तरह महसूस किया, और मेरे दिल को बहुत राहत पहुँची। तदनुसार मैंने अपने दिल में यह विश्‍वास कर लिया कि यह वह कलीसिया थी जिसकी मुझे तलाश थी।

 

बाद में, सभा के दौरान, मैं एक बहन की यह बात सुन कर भौचक्‍की रह गई कि इस बार परमेश्‍वर ने एक नारी के स्‍वरूप में देह धारण करी है। मैंने सोचा: "ऐसा कैसे है कि प्रभु जब लौटे हैं तो वे एक स्‍त्री बने हैं? हम प्रभु को अपनी प्रार्थना में 'स्‍वर्गिक पिता' कहते हैं। क्‍या 'पिता' पुल्लिंग नहीं है? मैं यह मान ही नहीं सकती कि परमेश्‍वर ने एक नारी के के स्‍वरूप में देह धारण की है।" मैंने तब उन बहन को कहा, "आप कह रही हैं कि प्रभु यीशु एक स्‍त्री के रूप में लौटे हैं। यह असंभव है! बाइबल के कई अंश यह अभिलेख रखते हैं कि प्रभु यीशु स्‍वर्ग के परमेश्‍वर को 'पिता' कह कर पुकारते थे और स्‍वर्ग के परमेश्‍वर प्रभु यीशु को 'बेटा'। चूँकि वे पिता और पुत्र हैं, तो क्‍या इसका यह अर्थ नहीं है कि वे नर हैं? तो जब प्रभु लौटेंगे, तब उन्‍हें नर होना चाहिए।"

 

मेरी बात सुनने के बाद, बहन लूसी ने सहभागिता की, "पिता और पुत्र के विषय में बाइबल में एक संदर्भ है, और उसका सच्‍चा अर्थ अवधारणाओं पर आधारित हमारी समझ के भिन्‍न है। आओ हम परमेश्‍वर के वचनों के दो अंश पढ़ते हैं, और तब हम समझ पाएँगे। परमेश्‍वर कहते हैं, 'जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण देह का चोला धारण किया था और उसके पास एक सृजित प्राणी का बाह्य आवरण था। यद्यपि उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी स्वरूप अभी भी एक साधारण व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह "मनुष्य का पुत्र" बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी कवच के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ है। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसा कि तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। क्या तुम लोगों को अभी भी प्रभु की प्रार्थना याद है जो यीशु ने तुम्हें याद करने के लिए सिखाई थी? "हे पिता हमारे, जो स्वर्ग में है…।" उसने सभी मनुष्यों से स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाने को कहा। और तब से उसने भी उसे पिता कहा, उसने ऐसा उस व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से किया था जो तुम सभी के साथ समान स्तर पर खड़ा था।' 'अभी भी ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, "क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?" यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है—यह निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को साक्ष्य देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के वचन, "मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है," क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है।' परमेश्‍वर के वचनों से यह देखा जा सकता है कि प्रभु यीशु स्‍वयं परमेश्‍वर हैं, एवं परमेश्‍वर की आत्‍मा एक सामान्‍य और आम देह में वेष्टित है और वे हम सृजित मानवता के समान लगते हैं। जब प्रभु यीशु ने स्‍वर्ग के परमेश्‍वर को अपनी प्रार्थना में पिता कह कर पुकारा, तो उन्‍होंने ऐसा एक सृजित प्राणी के स्‍वरूप में किया, यानी कि, एक देह के रूप में; जब स्‍वर्ग के पिता ने प्रभु यीशु को अपना प्रिय पुत्र कह कर पुकारा, तो वह परमेश्‍वर द्वारा आध्‍यात्मिक परिप्रेक्ष्‍य से यह साक्षी देने की जगह कि प्रभु यीशु उनके बेटे हैं, यह गवाही देना था कि प्रभु यीशु ही देहधारी परमेश्‍वर हैं—जिसका परमेश्‍वर के लिंग निरूपण से कुछ संबंध नहीं है। जब परमेश्‍वर देह में अपना कार्य पूरा कर लेते हैं, तो कोई पुत्र और पिता नहीं रहेगा। इसलिए, क्‍योंकि प्रभु यीशु ने स्‍वर्ग के परमेश्‍वर को पिता कहा और स्‍वर्ग के परमेश्‍वर ने प्रभु यीशु को अपना बेटा कहा, केवल इसलिए हम परमेश्‍वर को केवल पुरुष नहीं कह सकते हैं।"

 

मैं उन बहन की सहभागिता सुन कर दंग रह गई। ऐसा पाया गया कि बाइबल में पिता और पुत्र शब्‍द परमेश्‍वर के पुरुष होने की ओर इशारा नहीं करते हैं। लेकिन तब मैंने यह सोचा कि जो पहला मनुष्‍य परमेश्‍वर ने बनाया था वह एक पुरुष था। उसके बाद, मैंने कहा, "बाइबल में, उत्‍पत्ति 1:26 में यह वर्णित है, 'हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।' आदम, परमेश्‍वर द्वारा रचित किया गया पहला मनुष्‍य, एक पुरुष था, और हम इस पद में पाते हैं कि वह परमेश्‍वर के स्‍वरूप के अनुसार बनाया गया था। यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्‍त है कि परमेश्‍वर पुरुष हैं।"

 

बहन करीना ने धीरज के साथ सहभागिता करते हुए कहा, "बहन, यह सच है कि जो पहला मनुष्‍य परमेश्‍वर ने सृजित किया वह पुरुष था, लेकिन बाइबल यह भी कहती है, 'तब परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्‍पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्‍पन्‍न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की' (उत्‍पत्ति 1:27)। यह पद हमें बताता है कि परमेश्‍वर ने न केवल नर को बल्कि, नर और नारी दोनों को अपने स्‍वरूप के अनुसार सृजित किया। अगर हम इस आधार पर कि आदम जो पहला मनुष्‍य परमेश्‍वर ने बनाया वह नर था, तो हम यह कैसे बता सकते हैं कि परमेश्‍वर ने नारी को भी अपने स्‍वरूप के अनुसार सृजित किया? क्‍या यह इस पद का खण्‍डन नहीं करता है? वास्‍तविकता में, परमेश्‍वर का सार आत्‍मा है और आत्‍मा में कोई लैंगिकता नहीं होती। परमेश्‍वर, अपने उद्धार के कार्य की आवश्‍यकता के अनुसार एक नर अथवा नारी के रूप में देह धारण करते हैं। और इसलिए उनके देहधारण में लिंग-भेद होता है। तब भी, चाहे परमेश्‍वर नर के रूप में देहधारण करें या नारी के, जब तक कि वे ऐसी देह हैं जो परमेश्‍वर का आत्‍मा पहनता है, वे परमेश्‍वर स्‍वयं हैं; उनका नारी के स्‍वरूप को धारण करना परमेश्‍वर के सार को प्रभावित नहीं करता है। इसलिए हमें देहधारी परमेश्‍वर का लिंग सीमांकन करने के लिए अपनी अवधारणाओं और कल्‍पनाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।"

 

हालाँकि बहन करीना ने जो सहभागिता की वह उचित थी, मेरे लिए यह स्‍वीकार करना बहुत कठिन था, कि परमेश्‍वर ने एक स्‍त्री के स्‍वरूप में जन्‍म लिया है, क्‍योंकि यह मेरी अवधारणा के मान पर सही नहीं बैठ रहा था। मैंने सोचा, "प्रभु के आगमन के संबंध में, मुझे सावधानी पूर्वक सोचना चाहिए। मैं इसकी और अधिक स्‍पष्‍टता से जाँच करने से पहले, बिना सोचे विचारे कोई फैसला नहीं कर सकती थी। अगर मैं गलत विश्‍वास करने लगती, तो क्‍या मेरी बीस सालों की आस्‍था बेकार ही नहीं हो जाती?" तो मैंने परमेश्‍वर से मेरा मार्गदर्शन करने के लिए चुपचाप प्रार्थना की।

 

सभा के बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया के बारे में इंटरनेट पर और खोज की और परमेश्‍वर के नारी के स्‍वरूप में लौटने के विषय में विभिन्‍न रायों को देखा। फलस्‍वरूप मैं और अधिक भ्रमित हो गई। उस दौरान, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया की बहनों से हमेशा सत्‍य के पहलू पर मेरे साथ सहभागिता की, लेकिन मैं तब भी उसे स्‍वीकार न कर सकी, तो मैंने उनके साथ मिलना-जुलना बंद कर दिया। उसके बाद, मैंने बहुत बैचेनी अनुभव की। उस समयावधि के बारे में सोचते हुए, उनके साथ बैठक करते हुए, मैंने बहुत से ऐसे सत्‍य समझे जो मैंने पहले नहीं समझे थे और मैंने उनसे शिक्षा ग्रहण की। तब भी, ऐसा कोई तरीका नहीं था कि मैं यह तथ्‍य स्‍वीकार कर पाती कि प्रभु एक नारी के स्‍वरूप में देह में लौटे हैं।

 

आगामी दिनों में, मैं अपनी पुरानी स्थिति में पहुँच गई, जहाँ मेरी आत्‍मा शुष्‍क महसूस होने लगी, और मेरा जीवन बहुत रिक्‍त हो गया, और इस कारण मैं सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया की बहनों के साथ बातचीत की कमी महसूस करने लगी। ईमानदारी से कहूँ तो, हालाँकि मैं यह स्‍वीकार नहीं कर पा रही थी कि परमेश्‍वर का दूसरा देहधारण नारी के स्‍वरूप में हुआ है, मैंने अनुभव किया कि उनके साथ कि हर मुलाकात लाभकारी रही थी। उनकी सहभागिता स्‍थापित थी और बाइबल के अनुरूप थी। इस तरह खोज और अध्‍ययन करते हुए, क्‍या मैं बहुत मनमानी कर रही थी? मैंने थोड़ा समय सावधानीपूर्वक सोचा और फिर सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की जाँच करने और समझने को निरंतर रखने का निर्णय रखा। उसके बाद, मैंने गुप्‍त रूप से परमेश्‍वर के वचनों की पुस्‍तकें और वेबसाईट पर गवाही के लेख पढ़ना शुरू कर दिया।

 

एक दिन, मैंने परमेश्‍वर के वचनों का अंश पढ़ा, "अपनी धारणाओं को एक ओर रख दो! शांत हो जाओ और इन शब्दों को सावधानीपूर्वक पढ़ो। यदि तुम सच्चाई के लिए तरसते हो, तो परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम उसकी इच्छा और उसके वचनों को समझोगे। 'असंभव' के बारे में तुम लोग अपनी राय को अलग रखो! लोग जितना अधिक मानते हैं कि कुछ असंभव है, उतना ही अधिक होने की संभावना होती है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमाओं से परे जाता है। जितना अधिक कुछ असंभव होता है, उतना ही अधिक उसमें सच्चाई होती है जिसे खोजा जा सकता है; कोई चीज़ मनुष्य की धारणा और कल्पना से जितनी अधिक परे रहती है, उसमें परमेश्वर की इच्छा उतनी ही अधिक होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भले ही वह स्वयं को कहीं भी प्रकट क्यों न करता हो, परमेश्वर तब भी परमेश्वर है, और उसके प्रकटन के स्थान या तरीके की वजह से उसका सार कभी नहीं बदलेगा।"

 

इन वचनों ने मुझे गहराई में छू दिया। हाँ! जब परमेश्‍वर का कार्य मेरी अवधारणाओं और कल्‍पनाओं के अनुरूप नहीं था, तो मैं परमेश्‍वर की इच्‍छा की खोज करने के लिए अपनी अवधारणाओं और कल्‍पनाओं से चिपकी रही, और इसलिए परमेश्‍वर का कार्य करने को अस्‍वीकार कर दिया। क्‍या इसे करने में बहुत अभिमानी हो गई थी? परमेश्‍वर सृजनकर्ता हैं और जब वे अपना कार्य करते हैं उसकी उनकी अपनी ही योजना और तरीके होते हैं। एक सृजित प्राणी के रूप में मैं किस तरह उनके कार्य को समझ सकती थी? बाइबल यह अभिलिखित करती है, "क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है" (यशायाह 55:8-9)। तो, मैं अंधों की तरह अपनी ही अवधारणाओं और कल्‍पनाओं से चिपकी नहीं रह सकती और मुझे बहनों के साथ और अधिक सहभागिता करने की आवश्‍यकता थी।

 

बाद में, मैंने बहन लूसी से पुन: सम्‍पर्क स्‍थापित किया और वे बहुत उत्‍साहित हो गईं और उन्‍होंने कहा, "परमेश्‍वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन के लिए धन्‍यवाद, आपने अंतत: उनकी इच्‍छा को समझ लिया और उनके समक्ष फिर से लौट आईं। यह वाकई परमेश्‍वर की भेड़ों द्वारा उनकी वाणी को सुनना है। बहन, हम इन दिनों परमेश्‍वर से आपका मार्गदर्शन करने के लिए लगातार प्रार्थना करते रहे हैं।" इसने मेरे दिल को गहरे से छू लिया और मैं गदगद हो गई।

 

इसके बाद मैंने उन्‍हें अपनी उलझन के बारे में बताया, "जब पहली बार परमेश्‍वर ने देहधारण की थी, वे नर थे, तो इस बार उन्‍होंने क्‍यों एक नर की जगह नारी का स्‍वरूप धारण किया है?"

 

लूसी ने एक मुस्‍कान के साथ कहा, "बहन, मैं भी यह विश्‍वास करती थी कि क्‍योंकि प्रभु यीशु नर थे, उनका दूसरा आगमन भी नर के स्‍वरूप में ही होगा, जो हमारी अवधारणाओं के अनुरूप है। तो भी, परमेश्‍वर के अपना कार्य करने के लिए अपनी ही योजनाएँ हैं। इस बारे में, आओ हम परमेश्‍वर के वचन के दो अंश पढ़ते हैं। परमेश्‍वर कहते हैं, 'परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण का एक व्यवहारिक महत्व है। जब यीशु का आगमन हुआ, वह पुरुष था, लेकिन इस बार के आगमन में परमेश्वर स्त्री है। इससे, तुम देख सकते हो कि परमेश्वर ने अपने कार्य के लिए पुरुष और स्त्री दोनों का सृजन किया और वह लिंग के बारे में कोई भी भेदभाव नहीं करता है। जब उसका आत्मा आगमन करता है, तो वह इच्छानुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है और वह देह उसका ही प्रतिनिधित्व करता है। चाहे यह पुरुष हो या स्त्री, दोनों ही परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि यह उसका देहधारी शरीर है। यदि यीशु एक स्त्री के रूप में आ जाता और प्रकट हो जाता, दूसरे शब्दों में, यदि पवित्र आत्मा के द्वारा एक शिशु कन्या का, न कि एक लड़के का, गर्भधारण किया गया होता, तब भी कार्य का वह चरण उसी तरह से पूरा किया गया होता। यदि ऐसी बात होती तो, कार्य का यह स्तर एक पुरुष के द्वारा पूरा किया जाता और तब भी वह कार्य उसी तरह से पूरा किया जाता। दोनों ही चरणों में किया गया कार्य महत्वपूर्ण है; कोई भी कार्य दोहराया नहीं जाता है या एक-दूसरे का विरोध नहीं करता है। …यदि इस चरण में वह स्वयं कार्य करने के लिए देह धारण नहीं करता जिसे मनुष्य देखे, तो मनुष्य हमेशा के लिए यही अवधारणा बनाए रखता कि परमेश्वर सिर्फ पुरुष है, स्त्री नहीं।' 'यदि परमेश्वर केवल एक पुरुष के रूप में देह में आता, तो लोग उसे पुरुष के रूप में, पुरुषों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित करते, और कभी भी उस पर महिलाओं के परमेश्वर के रूप में विश्वास नहीं करते। तब पुरुष यह मानते कि परमेश्वर पुरुषों के समान लिंग का है, कि परमेश्वर पुरुषों का प्रमुख है—और तब महिलाओं का क्या होता? यह अनुचित है; क्या यह पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं है? यदि ऐसा मामला होता, तो वे सभी लोग जिन्हें परमेश्वर ने बचाया, उसके समान पुरुष होते, और एक भी महिला बचायी नहीं गई होती। जब परमेश्वर ने मनुष्यजाति का सृजन किया, तो उसने आदम को बनाया और उसने हव्वा को बनाया। उसने न केवल आदम को बनाया, बल्कि पुरुष और महिला दोनों को अपनी छवि में बनाया। परमेश्वर न केवल पुरुषों का परमेश्वर है—वह महिलाओं का भी परमेश्वर है।'"

 

परमेश्‍वर के वचन पढ़ने के बाद, बहन ने सहभागिता में कहा, "परमेश्‍वर के वचन कहते हैं कि परमेश्‍वर द्वारा किए गए हर चरण के कार्य का व्यवहारिक महत्व होता है। अनुग्रह के युग में, जब प्रभु यीशु कार्य के लिए आए थे, तो वे नर थे; अंत के दिनों में जब वे लौटते हैं, तो वे नारी हैं। इससे हमें यह देखने को मिलता है कि परमेश्‍वर ने नर और नारी दोनों का अपने कार्य के लिए सृजन किया और यह कि परमेश्‍वर का कोई लिंग नहीं होता है। चाहे परमेश्‍वर एक नर के स्‍वरूप में देहधारण करें या नारी के, जब तक वे परमेश्‍वर की आत्‍मा का देहधारण हैं, वे स्‍वयं परमेश्‍वर हैं। यदि परमेश्‍वर केवल एक नर के स्‍वरूप में ही देहधारण करते हैं, तो हम उन्‍हें नरों के परमेश्‍वर कह कर नर के रूप में परिभाषित कर देंगे, और कभी भी उन्‍हें नारी के परमेश्‍वर होने पर विश्‍वास नहीं करेंगे। अंत के दिनों में, परमेश्‍वर एक नारी के स्‍वरूप में इसलिए देहधारण करते हैं, ताकि 'परमेश्‍वर केवल नर के स्‍वरूप में ही देहधारण कर सकते हैं' जैसी हमारी धारणाओं का प्रत्‍युत्तर देकर हमारे बेतुका ख्‍याल को बदल सकें। इससे यह देखा जा सकता है कि परमेश्‍वर नर और नारी दोनों ही बन सकते हैं, कि परमेश्‍वर केवल नरों के ही परमेश्‍वर नहीं नारियों के भी परमेश्‍वर हैं, और वे न केवल नर को वरन् नारियों को भी बचाते हैं। इसलिए, परमेश्‍वर का नारी के स्वरूप में देह में आना इतना अर्थपूर्ण है। परमेश्‍वर कितने बुद्धिमत्‍तापूर्ण और अद्भुत है!"

 

उनकी सहभागिता को सुन कर, मैंने उत्‍साह के साथ कहा, "आपके इस प्रकार सहभागिता करने से, मैं अब समझ गई। इस समय परमेश्‍वर का नारी के स्‍वरूप में देहधारण करना महत्‍वपूर्ण है। यह परमेश्‍वर को लेकर हमारी धारणाओं और कल्‍पनाओं का समाधान करने के लिए है। इसने मेरी 'परमेश्‍वर केवल नर के स्‍वरूप में ही देहधारण कर सकते हैं' की अवधारणा को ध्‍वस्‍त कर दिया और इस प्रकार परमेश्‍वर को किसी भी प्रकार सीमांकित नहीं करने दिया। परमेश्‍वर के कार्य कितने बुद्धिमत्‍तापूर्ण और सर्वशक्तिमान हैं!"

 

"हाँ! अपने दो देहधारणों में परमेश्‍वर द्वारा दो विभिन्‍न प्रकार के लिंग चुनाव का महत्‍व है। परमेश्‍वर कौन सा लिंग लेते हैं यह उनके कार्य की आवश्‍यकता पर निर्भर करता है। इससे, हम उनकी बुद्धिमत्‍ता और सर्वशक्तिमत्‍ता देख सकते हैं," बहन करीना ने भावाभूत होते हुए कहा।

 

परमेश्‍वर का धन्‍यवाद! उनकी सहभागिता के कारण, मैंने बहुत प्रबुद्ध अनुभव किया और मैं परमेश्‍वर के नए कार्य की खोज और उसका अध्‍ययन करने के लिए तैयार थी।

 

बाद में, मैंने परमेश्‍वर के वचन का एक अंश देखा, "बाहरी बातें सार का निर्धारण नहीं करती हैं; उससे भी बढ़कर, परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की अवधारणाओं के अनुरूप कभी भी नहीं हो सकता है। क्या यीशु का बाहरी रूपरंग मनुष्य की अवधारणाओं से संघर्ष नहीं करता था? क्या उसका रूपरंग और पहनावा, उसकी वास्तविक पहचान के बारे में कोई सुराग देने में असमर्थ नहीं थे? क्या यही वह कारण नहीं था कि आरंभिक फरीसियों ने यीशु का विरोध किया, क्योंकि उन्होंने केवल उसके बाहरी रूपरंग को ही देखा, और उसके द्वारा बोले गये वचनों को अपने हृदय में ग्रहण नहीं किया? मुझे उम्मीद है कि वे भाई-बहन जो परमेश्वर के रूपरंग की खोज में हैं, वे इतिहास की इस त्रासदी या दुःखद घटना को नहीं दोहराएँगे। तुम्हें आधुनिक काल का फरीसी नहीं बनना चाहिए और परमेश्वर को फिर से सलीब पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। तुम्हें सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए कि परमेश्वर के वापस लौटने का स्वागत कैसे करें, और एक स्पष्ट मन रखना चाहिए कि कैसे ऐसा व्यक्ति बने जो सत्य के प्रति समर्पित होता है।" परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि, चाहे परमेश्‍वर कैसे भी दिखते हों या अपना कार्य करने के लिए कोई भी रुप धारण करते हों, यह महत्‍वपूर्ण नहीं है। देहधारी परमेश्‍वर पवित्र देह हैं और सत्‍य व्‍यक्‍त करने और मनुष्‍य को बचाने का कार्य कर सकते हैं। प्रभु की वापसी जैसा बड़े समारोह के सम्‍मुख मुझे उसकी विनम्रतापूर्वक खोज और जाँच करनी चाहिए थी, लेकिन मैंने परमेश्‍वर के नए कार्य को नकार दिया, क्‍योंकि मैं अपनी ही अवधारणाओं और कल्‍पनाओं से जकड़ी रही, यह तय करते हुए कि परमेश्‍वर का देहधारण नर का ही होना चाहिए, नारी का नहीं। मैंने तो यह भी एहसास नहीं किया कि मैं परमेश्‍वर का विरोध करने के मार्ग पर चलने लगी थी। मैं बहुत मूर्ख और बेवकूफ़ थी! दो हज़ार साल पहले की याद करके, फरीसियों ने प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करके उन्‍हें क्रूस पर चढ़ा दिया था, जिससे परमेश्‍वर का स्‍वभाव अपमानित हुआ। क्‍या यह इसलिए नहीं था कि देहधारी प्रभु यीशु उनकी अवधारणाओं और कल्‍पनाओं के अनुसार नहीं थे? अपने बारे में सोचते हुए, अगर यह परमेश्‍वर द्वारा अपने वचनों से मुझे प्रबुद्ध करना और धीरजपूर्वक बहनों की मेरे साथ सहभागिता करने की व्‍यवस्‍था का दया और अनुग्रह न होता, तो मैं परमेश्‍वर द्वारा उनका विरोध करने और अपनी अवधारणाओं तथा कल्‍पनाओं से चिपके रहने के लिए हटा दी गई होती। इसका एहसास करते हुए, मैंने सोचा: "मैं अब और परमेश्‍वर के विरूद्ध विद्रोह नहीं कर सकती, और मुझे सत्‍य को स्‍वीकार करना और मेमने के पदचिन्‍हों का अनुसरण करना ही चाहिए।" परिणामस्‍वरूप, मैंने दिल में चुपचाप प्रार्थना की, "हे प्रभु! आप मेरे अज्ञान और मूर्खताओं को क्षमा कर देना। क्‍योंकि मैं अपनी अवधारणाओं और कल्‍पनाओं से चिपकी रही और सत्‍य को स्‍वीकार नहीं किया, मैंने आपका उद्धार मानो खो ही दिया था। अब मैं अपनी अवधारणाओं को एक और रख कर आपसे पश्‍चाताप कर सकती हूँ।"

 

बाद में, अंत के दिनों में परमेश्‍वर के कार्य के परीक्षण में समय लगाकर, मैंने यह निश्चित किया कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही लौटे हुए प्रभु यीशु हैं। यह सोचते हुए कि कैसे परमेश्‍वर ने मुझे उनके प्रकटन का स्‍वागत करने के लिए मार्गदर्शित किया, मैं महसूस करती हूँ कि मैं वाकई भाग्‍यशाली हूँ। अब मैं औपचारिक तौर पर सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया में शामिल हो गई हूँ और मैंने कलीसिया का जीवन जीना प्रारंभ कर दिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का धन्‍यवाद! सभी महिमा परमेश्‍वर की है!

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

 

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