प्रभु यीशु ने इंसान के पापों को क्षमा कर दिया है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इंसान के कोई पाप ही नहीं हैं। इसका मतलब ये नहीं कि इंसान को उसके पापों के नियंत्रण से आज़ादी मिल गई या वो पवित्र हो गया है।
हमारा काम सिर्फ़ परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकारना और उसकी आज्ञा का पालन करना है ताकि हम उद्धार पा सकें और परमेश्वर को प्राप्त हो सकें। इस बात की पुष्टि हर वह व्यक्ति कर सकता है जिसने सचमुच परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य का अनुभव कर लिया है।
प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में यह भविष्यवाणी की गई है: "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)।
"तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना 5:39-40)।
"यीशु ने उससे कहा, 'मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते; और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है'"
यहोवा परमेश्वर ने पुराने नियम में हमें स्पष्ट रूप से बताया है: "मैं ही यहोवा हूँ और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं" (यशायाह 43:11)। "यहोवा … सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा"
"आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था" (यूहन्ना 1:1)।
"और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया" (यूहन्ना 1:14)।
"और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते, क्योंकि जिसे उसने भेजा तुम उसका विश्वास नहीं करते। तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते"
बाइबल कहती है, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। हम इसकी व्याख्या कैसे करें?
आस्था प्रश्न व उत्तर · 02. February 2020
अब हम अंत के दिनों के अंतिम चरण में हैं, मैंने समाचार में देखा है कि सभी प्रकार की आपदाएँ बढ़ रही हैं और इनका परिमाण भी बढ़ रहा है।