· 

प्रभु के साथ पुनर्मिलन: मुझे अंतत: "वर्षा युक्त नगर" मिल गया

एन्दाई, दक्षिण कोरिया

संपादक की टिप्पणी

 

अपनी कलीसिया की उजाड़ता के कारण वो सदा एक ऐसी कलीसिया की तलाश में रहती थी जहाँ पवित्र आत्मा का कार्य हो। अब उसे अंतत: एक वर्षा युक्त नगर मिल गया और उसने जीवन-जल की आपूर्ति पा लिया।

 

 प्रभु से पहली बार मुलाकात होती है और मैं शांति और आनंद का अनुभव करती हूँ

2010 में, मैं अपने पति के साथ दक्षिण कोरिया चली आई। हमारे घर के पास की एक कलीसिया में मैं प्रभु यीशु पर विश्वास करने लगी। सभाओं में, पादरी अक्सर "क्रूस के उद्धार" और "परमेश्वर दुनिया के लोगों से प्यार करता है" के मार्ग का प्रचार करते थे, और प्रभु यीशु के महान प्रेम से मेरे दिल में गहरी प्रेरणा उत्पन्न होती थी। जब भी मैं प्रभु से प्रार्थना करती थी, मुझे लगता कि जैसे वह ठीक मेरे बगल में है, और मेरा दिल शांति और सुरक्षा की भावनाओं से भर जाता था। उस समय, मैं पादरी के उपदेशों को सुनने के लिए हर हफ्ते, समय पर कलीसिया में उपस्थित होता थी, मैं हर दिन ईमानदारी से बाइबल पढ़ती थी, और एक साल के भीतर पूरी किताब को समाप्त करने में कामयाब रही। मैंने प्रभु यीशु की भविष्यवाणियां पढ़ीं कि वे अंत के दिनों में हमें स्वर्गिक राज्य में ले जाने के लिए वापस आयेंगे, इसलिए मैं आशा करने लगी कि मैं अपने जीवनकाल में ही प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाऊँ।

 

कलीसिया उजाड़ हो जाती है और मैं दर्द की बेहोशी में खोजती हूँ

 

कई साल बीत गए और मैं प्रभु यीशु लौट आने की लालसा खत्म करती रही, फिर भी मुझे लगा कि मेरी कलीसिया की स्थिति पहले की तुलना में बहुत अलग हो गई है। पादरी हमेशा उन्हीं पुरानी बातों का उपदेश देते हैं और उनके उपदेशों में कोई नया प्रकाश नहीं होता है। सुबह की प्रार्थना में, कुछ भाई-बहन लगातार जम्हाई लेते रहते हैं, कुछ तो वास्तव में सो जाते हैं। मैं भी आधी उलझन की स्थिति में थी और मेरी प्रार्थनाएं संवेदनहीन और भावनाओं से रहित थीं। और तो और, कलीसिया में आने वाले लोगों की संख्या 40-50 से घटकर लगभग एक दर्जन हो गई थी, जो बचे थे उन्हें आने की भी जल्दी रहती थी और जाने की भी, सभाओं के दौरान वे झपकी भी लेते ठे। इतना ही नहीं पादरी हमेशा लोगों को सभाओं में दान करने के लिए प्रेरित करते थे। प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा है, "परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए। ताकि तेरा दान गुप्‍त रहे, और तब तेरा पिता जो गुप्‍त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा" (मत्ती 6:3-4)। और फिर भी सभाओं में, पादरी हमेशा सार्वजनिक रूप से घोषणा करते थे कि लोगों ने कितना दान किया है, और वह उन लोगों के लिए हमेशा सबसे अच्छा व्यवहार करते थे जो सबसे अधिक दान दिया करते थे। दान के एक बड़े हिस्से का उपयोग पादरी और उसके डीकनों के वेतन का भुगतान करने के लिए किया जाता था, उनके बच्चों का खर्च भी यहीं से आता था। मैंने पुराने नियम के एली के दो बेटों के बारे में सोचा। चूँकि वे बेशर्मी से यहोवा के लिए चढ़ाए गए प्रसाद को चुराते थे, इसलिए उन्हें परमेश्वर ने दंडित किया था। मैं पादरी के क्रियाकलापों से हैरान थी: भाई-बहनों द्वारा दान किया गया धन परमेश्वर के लिए था और यह एक भेंट थी। पादरी इस पैसे को कैसे ले सकते हैं और अपने परिवार पर इतनी लापरवाही से कैसे खर्च कर सकते हैं? क्या वे ऐसा काम करने के कारण प्रभु द्वारा अनुशासित किये जाने से नहीं डरते थे? अपनी कलीसिया में चल रही सभी गैरकानूनी चीजों को देखकर, मैं वास्तव में दुखी महसूस कर रही थी, और मैंने सोचा: मेरी कलीसिया ऐसी कैसे हो सकती है? पहले के समय का फलती-फूलती कलीसिया कहाँ गई? क्या प्रभु अभी भी हमारे साथ हैं? मैं एक अन्य कलीसिया खोजने के लिए कहीं और जाने के बारे में सोचने लगी।

 

कलीसिया उजाड़ हो जाती है

उसके कुछ ही समय बाद, मैं एक नए घर में आ गयी। मैं एक अच्छी कलीसिया ढूंढना चाहती थी और उस उत्साह को फिर से खोजना चाहती थी जो मैंने तब पाया था जब मैंने पहली बार प्रभु पर विश्वास करना शुरू किया था। इसलिए, मैंने अपने आसपास पूछा, अपने एक पड़ोसी द्वारा परिचय कराए जाने के माध्यम से, मैं एक कलीसिया में आई और देखा कि यह एक बहुत बड़ी इमारत में है, जहाँ कई लोग सभाओं में आते हैं। हालाँकि बाद में, मुझे पता चला कि प्रार्थना करने और सभा में शामिल होने आने वाले अधिकांश लोग बस अलग-अलग भाषाओँ में बातें करने आते थे और वे प्रभु के वचनों की संगति के बारे में ज़्यादा नहीं सोचते थे। चूँकि मुझे समझ में नहीं आता था कि वे क्या कह रहे हैं, इसलिए मैं एक बार फिर से नींद से गिर जाती थी, और मैं चिंतित हो गयी कि अगर यह लंबे समय तक चलता रहा तो प्रभु मुझे छोड़ देंगे। तब मैंने प्रभु यीशु के वचनों के बारे में सोचा, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। परमेश्वर के वचन जीवित जल का कुआँ हैं, और जब तक मैं उनके वचनों को अधिक से अधिक समझ सकती हूँ, तब तक प्रभु में मेरे विश्वास की शक्ति निश्चित रूप से बढ़ेगी। इसलिए, मैंने कलीसिया में एक बाइबिल प्रशिक्षण कक्षा में भाग लिया। एक साल की कक्षा के बाद, भले ही, शास्त्रों से मैं अच्छे से वाकिफ हो गयी, लेकिन मैंने इससे बहुत कुछ हासिल नहीं किया। दो साल बीत गए और मैं अभी भी प्रभु की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पा रही थी, मेरे पास एक बार फिर निराशा में आकर इस कलीसिया को छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। बाद में, मेरी पड़ोसन ने मुझे एक कलीसिया के बारे में बताया, जहाँ बड़े अच्छे उपदेश दिए जाते हैं, उसने मुझसे उन्हें सुनने का आग्रह किया। आशा की एक किरण के साथ, मैं उस कलीसिया में गयी, जिसके बारे में उसने मुझे बताया था। मेरी उम्मीदों के विपरीत, इस कलीसिया की स्थिति पहले की दो कलीसियाओं की तरह ही थी, जिनमें मैंने भाग लिया था: पादरी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिसमें थोड़ा भी प्रकाश हो, लोग कलीसिया के गलियारे में शहद, सब्जियां और तेल आदि बेच रहे थे। यह देखते हुए कि कलीसिया के साथ एक खाद्य बाजार की तरह व्यवहार किया जा रहा है, मुझे उस वक्त की याद आई जब प्रभु ने फरीसियों, मुख्य पुजारियों और शास्त्रियों को यह कहते हुए फटकार लगाई थी: "और उनसे कहा, लिखा है, 'मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,' परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है" (लूका 19:46)। कलीसिया एक ऐसा स्थान है जहां परमेश्वर की आराधना की जाती है—कलीसिया के अंदर खरीद-बिक्री करके वे इस तरह की मिसाल कैसे रख सकते हैं? यह दो हजार साल पहले के मंदिर जैसा ही था!

 

जिन कलीसियाओं में मैंने भाग लिया था, उन्हें देखते हुए, मुझे समझ आया कि वे सभी बहुत समान थे, बिना पवित्र आत्मा के कार्य या मार्गदर्शन के था, और अधिकांश लोग नकारात्मकता और ठहराव की स्थिति में थे। ऐसी स्थिति को सामने पाकर, मुझे अपने दिल में बहुत दर्द हुआ, मुझे नहीं पता था कि किस मार्ग पर चलना चाहिए। शुरुआत में, मैंने प्रभु पर विश्वास किया था ताकि मैं उनकी प्रशंसा अर्जित कर सकूँ और स्वर्गिक राज्य में पहुंच सकूँ, लेकिन अब मैं प्रभु के प्रति अपने विश्वास और प्रेम को पुन: प्राप्त करने में असमर्थ हो गयी थी, इसलिए यदि सब ऐसे ही चलता रहा तो मैं स्वर्ग के राज्य में कैसे पहुंचूंगी? लेकिन मेरे पास अभ्यास का कोई दूसरा रास्ता नहीं था, मेरी एकमात्र आशा थी कि प्रभु जल्द से जल्द वापस आ जायें। मैं अक्सर परमेश्वर से अपने दिल में ख़ामोशी से प्रार्थना करती थी: "हे प्रभु! आप कब वापस आयेंगे?"

 

मुझे कलीसियाओं की उजाड़ता का कारण पता चला

 

अगस्त 2016 में एक दिन, बहन काओ, एक ईसाई मित्र को मेरे घर लायी जिनका नाम बहन जिन था। जब हम कलीसियाओं की वीरानी के बारे में बात करने लगे, तो मैंने भावना से भरकर कहा, "मुझे उन परिस्थितयों की वाकई बड़ी याद आती है जो उस समय थीं जब मैंने पहली बार प्रभु में विश्वास करना शुरू किया था। प्रभु हर दिन मेरे साथ होते थे और मेरा दिल शांति और आनंद से भरा था। आजकल, मैं बाइबल पढ़ती हूँ, लेकिन मुझे कोई प्रबोधन या रोशनी नहीं मिलती है, मेरी प्रार्थना संवेदना और भावना से रहित है, मैं हमेशा कलीसिया की सभाओं में नींद से जूझती हूँ और मैं प्रभु के वचनों को व्यवहार में नहीं ला पाती हूँ। मैंने कुछ कलीसियाओं में भाग लिया है, लेकिन मेरे पास पहले जो विश्वास था, उसे फिर से हासिल करने में असमर्थ रहती हूँ। ओह, मुझे सच में कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या चल रहा है। प्रकाशितवाक्य में, परमेश्वर लौदिकिया की कलीसिया से स्वर्गदूत से कहते हैं: 'मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह में से उगलने पर हूँ' (प्रकाशितवाक्य 3:15-16)। आजकल की कलीसियाएं क्या लौदिकिया की कलीसिया की तरह ही नहीं हैं? अगर चीजें इस तरह से चलती रहीं, तो परमेश्वर हमें निश्चित रूप से छोड़ देंगे!" मैंने एक गहरी आह भरी।

 

बहन जिन ने कहा, "बहन, आप जिस समस्या के बारे में बता रही हैं, वो सभी कलीसियाओं में बड़ी सामान्य बात है। प्रभु यीशु ने कहा है, 'पर्व के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। जो मुझ पर विश्‍वास करेगा, जैसा पवित्रशा स्त्र में आया है, उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी' (यूहन्ना 7:37-38)। केवल परमेश्वर ही जीवन की रोटी है, जीवंत जल का कुआँ—जहाँ भी परमेश्वर हैं, वहाँ जीवन की रोटी भी है। पहले, जब हम प्रभु से प्रार्थना करते थे या उनके वचनों को पढ़ते थे, तो हम उनकी उपस्थिति को महसूस करते थे और हर बार जब हम एक सभा में शामिल होते थे तो हमें प्रकाश और अभ्यास का मार्ग मिलता था। अब, हालांकि, हम प्रभु की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं और हमारी आत्माएं अंधकारमय और स्थिर हो गई हैं। यह केवल यह दिखा सकता है कि प्रभु यीशु हमसे विदा हो चुके हैं; अर्थात, पवित्र आत्मा अब हमारे बीच कार्य नहीं कर रहे हैं। अगर पवित्र आत्मा का कार्य होता, तो कोई कलीसिया उजाड़ कैसे हो सकती थी?"

 

बहन की संगति ने मुझे यह एहसास दिलाया कि मैं कुछ नया सुन रही थी और मेरी रुचि अचानक से बढ़ गई। यह सोचकर कि हाल के वर्षों में चीजें कैसी थीं, बहन ने इसका सटीक वर्णन किया था, मैं वास्तव में इसका कारण जानना चाहता थी कि चीजें जैसी थीं वैसी क्यों थीं। इसलिए, मैंने बहन से पूछा, "इफिसियों 1:23 में लिखा है, 'यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है।' तो प्रभु कलीसिया से क्यों प्रस्थान करेंगे? क्या आप जानती हैं कि यह सब क्या है?"

 

 

बहन जिन ने अपनी संगति यह कहते हुए जारी रखी, "यह प्रश्न महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह इससे संबंधित है कि हम प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाएंगे या नहीं। सबसे पहले, आइए हम व्यवस्था के युग के अंत के मंदिर की वीरानी के बारे में विचार करें। जैसा कि हम सभी जानते हैं, शुरुआत में मंदिर यहोवा परमेश्वर की महिमा से भरा था, क्योंकि उन्होंने सुलैमान से कहा था: 'क्योंकि अब मैं ने इस भवन को अपनाया और पवित्र किया है कि मेरा नाम सदा के लिये इसमें बना रहे; मेरी आँखें और मेरा मन दोनों नित्य यहीं लगे रहेंगे' (2 इतिहास 7:16)। उस समय, जो लोग मंदिर में यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करते थे, वे आदरणीय और श्रद्धा से भरे थे, और कोई भी किसी भी तरह से लापरवाही का कम करने की हिम्मत नहीं करता था। जब पुजारियों ने मंदिर में प्रवेश किया, तो उन्हें पहले यहोवा की आज्ञाओं का पालन करना था, अन्यथा वे मंदिर के शिखर से नीचे गिरकर आग में जलकर मार दिए जाते थे। तो फिर, व्यवस्था के युग के अंत में, लोग परमेश्वर द्वारा अनुशासित या दंडित क्यों नहीं किए गए, जब पुजारियों ने अनुचित बलिदान किए और जब आम लोगों ने पैसे लेकर मंदिर में मवेशी, भेड़ और कबूतर का कारोबार किया? यह दिखाता है कि यहोवा पहले ही मंदिर से विदा हो चुका थे, इसीलिए लोगों ने वहाँ अपनी इच्छाशक्ति से काम करने की हिम्मत दिखाई। इससे हम देख सकते हैं कि मंदिर में वीरानी के दो कारण थे: पहला यह कि यहूदी नेता यहोवा की व्यवस्था का पालन नहीं करते थे, उनके मन में परमेश्वर का भय नहीं था और वे परमेश्वर के रास्ते से भटक गए थे, और इस तरह पवित्र आत्मा मंदिर से चला गया और अब वहाँ कार्य नहीं करता था। दूसरा कारण यह था कि, मानवजाति को बचाने की अपनी योजना के अनुसार और उस समय मानवजाति की जरूरतों के अनुसार, परमेश्वर ने मानवजाति को छुड़ाने के लिए क्रूस पर चढ़ने के कार्य के चरण को करने के लिए देहधारण किया था। इसलिए, जो भी उस समय प्रभु यीशु का अनुसरण करते थे, वे सभी पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा लाई गई शांति और प्रसन्नता का आनंद लेते थे, उन्होंने जीवन के जल की आपूर्ति प्राप्त की और उन्हें अभ्यास के नए रास्ते मिले। लेकिन, यहूदी याजक, फरीसी और आम लोग, व्यवस्था से चिपके रहते थे और उन्होंने प्रभु यीशु के उद्धार को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था, जिससे उन्होंने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया। यह वैसा ही है जैसा यहोवा परमेश्वर ने कहा था: 'देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महँगी करूँगा; उस में न तो अन्न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी' (आमोस 8:11)।"

 

बहन जिन की फेलोशिप वास्तव में बाइबिल के अनुरूप थी, और मैं गहरी सोच में डूबे बिना नहीं रह सकी: इसलिए मंदिर की उजाड़ता का कारण, धार्मिक अगुआओं द्वारा परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन न करना था, इस प्रकार वे परमेश्वर द्वारा घृणा किये गये और नकारे गये, इसका परिणाम यह हुआ कि परमेश्वर मंदिर से प्रस्थान कर गये। यह इस कारण भी हुआ कि परमेश्वर मंदिर के बाहर कार्य के एक नए चरण का को कर रहे थे। यदि ऐसा है, तो निश्चित रूप से धार्मिक दुनिया में फ़िलहाल जो उजाड़ता है वो इन्हीं कारणों से है? यह सब सोचते हुए, मैंने बहन जिन की संगति को सुनना जारी रखा।

 

उन्होंने बातें जारी रखीं: "जब परमेश्वर मंदिर से चले गए, तो वह अराजक और उजाड़ हो गया। इसी तरह, आज धार्मिक दुनिया में वीरानी का कारण यह है कि पादरी और एल्डर अब परमेश्वर की इच्छा के खिलाफ जाते हैं और अपे मन की करते हैं। वे भाई-बहनों के जीवन की परवाह नहीं करते; वे केवल अपने पद-प्रतिष्ठा पर ध्यान केंद्रित करते हैं। कलीसिया में, वे सामर्थ्य और लाभ के लिए एक-दूसरे के साथ संघर्ष करते हैं और वे स्वयं का दिखावा करने और खुद को गवाही देने के लिए बाइबल के अपने ज्ञान का प्रचार करते हैं। वे भाई-बहनों का अपने समक्ष लाते हैं और वे किसी भी तरह से परमेश्वर के लिए गवाही नहीं देते हैं या उनको ऊँचा नहीं उठाते हैं, न ही वे भाई-बहनों को परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने या अनुभव करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे प्रभु के मार्ग से पूरी तरह से भटक गए हैं, और यह धार्मिक दुनिया के पवित्र आत्मा के कार्य को खोने का मुख्य कारण है। दूसरा कारण यह है कि परमेश्वर ने एक नए युग की शुरुआत की है और एक बार फिर से कार्य के एक नए चरण को कर रहे हैं। जब कार्य का एक नया चरण शुरू होता है, तो पवित्र आत्मा का कार्य परमेश्वर के नए कार्य पर आगे बढ़ता है। यह सटीक रूप से बाइबल की भविष्यवाणी को पूरा करता है जिसमें कहा गया है, 'जब कटनी के तीन महीने रह गए, तब मैं ने तुम्हारे लिये वर्षा न की; मैं ने एक नगर में जल बरसाकर दूसरे में न बरसाया; एक खेत में जल बरसा, और दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया। इसलिये दो तीन नगरों के लोग पानी पीने को मारे मारे फिरते हुए एक ही नगर में आए, परन्तु तृप्‍त न हुए; तौभी तुम मेरी ओर न फिरे' (आमोस 4:7–8)। 'एक खेत में जल बरसा', का अर्थ है परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने और उसका पालन करने वाली कलीसिया से है। चूँकि वे परमेश्वर के नए कथन को स्वीकार करते हैं, वे आपूर्ति और जीवन के जल के पोषण का आनंद लेते हैं जो परमेश्वर के सिंहासन से बहता है। जबकि 'दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया' का अर्थ यह है कि क्योंकि धार्मिक दुनिया के पादरी और अगुआ प्रभु के वचनों और आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं, बल्कि परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करते हैं और उसका विरोध और निंदा करते हैं, इसलिए वे परमेश्वर के लिए घृणित हैं, उन्हें परमेश्वर द्वारा नकारा जाता है, और शापित किया जाता है। उन्होंने पवित्र आत्मा के कार्य को पूरी तरह से खो दिया है, वे जीवन जल की आपूर्ति प्राप्त करने में असमर्थ हैं, और वे उजाड़ता में पतित हो जाते हैं।"

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

Write a comment

Comments: 0