प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए एक अति महत्वपूर्ण कदम

 

एक लेख है, जिसका शीर्षक है "सीपी की जाँच।" यह एक ऐसे लड़के की कहानी है, जिसे सीपियाँ बहुत पसंद थीं। एक दिन, उसकी माँ घर पर सीपियों का एक बड़ा झोला लेकर आई। उसे स्वादिष्ट सीपी मिल सके इसके लिए, उसने पकाने से पहले सीपी की जाँच करने का फैसला किया ताकि वो देख सके कि सीपियाँ अच्छी हैं या नहीं और बुरी सीपियों को अलग निकाल सके। इसलिए, उसने एक सीपी निकाली, यह सोचकर कि वो ताज़ा और जीवित है, उसने उसे अन्य सीपियों के आकलन के लिए मानक के रूप में इस्तेमाल किया। फिर वो उनकी खोल पर हल्के से मारता, और उनकी तुलना मानक के साथ करता था। उसने एक-एक करके उन सीपियों को जांचा। सारी जाँच होने के बाद, उसने पाया कि अन्य सभी सीपियाँ या तो खराब थीं या मृत थीं। उसने अपनी मां को इस बारे में बताया। उसकी मां ने सोचा कि यह असंभव है, इसलिए, वह देखने गई कि क्या हुआ है। तब जाकर उसकी माँ को पता चला कि ऐसा इसलिए नहीं है कि अन्य सीपियाँ ताज़ा नहीं थीं, बल्कि उसके बेटे ने जिस सीपी को मानक के रूप में इस्तेमाल किया था, वास्तव में वह खराब थी। इस तरह, उसका बेटा यह कैसे बता सकता था कि अन्य सीपियाँ अच्छी हैं या नहीं, जब उसने एक खराब सीपी को मानक के रूप में खराब इस्तेमाल किया था?

 

कहानी पढ़ते समय, मैं नायक के लिए चिंतित था क्योंकि मुझे लगा था कि उसकी माँ को विक्रेता ने धोखा दे दिया है, और उस लड़के को सीपियाँ खाने के लिए नहीं मिलेंगी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वास्तव में पहली सीपी खराब थी। उस लड़के ने सोचा कि अपनी कल्पना पर निर्भर रहना अच्छा है, और उसने इसे मानक के रूप में उपयोग किया, जिसका नतीजा ये हुआ कि सभी सीपियों को उसने खराब मान लिया। अगर उसकी माँ को समय पर उसकी गलती का पता नहीं चलता, तो मुझे लगता है, उसने सभी क्लैसीपियों को फेंक दिया होता। कल्पनाएं और अवधारणाएं वास्तव में लोगों के लिए हानिकारक हैं!

 

उस समय मैं व्यवस्था के युग के बारे में सोचे बिना ना रह सका। उस समय, यहूदी मुख्य याजक, शास्त्री और फरीसी उत्सुकता से मसीहा के आगमन के लिए तरस रहे थे, लेकिन साथ ही, उन्होंने मसीह का विरोध करने और उनकी निंदा करने की पूरी कोशिश की। उन्होंने भविष्यवाणियों के बारे में बहुत सारे भ्रमों को पाल रखा था। वे सोचते थे कि उद्धारकर्ता जब आये तब उसको मसीहा कहा जाना चाहिए, वह शाही महल में या एक महान परिवार में या कम से कम एक प्रतिष्ठित परिवार में पैदा होना चाहिए। फिर भी जब प्रभु यीशु आए, तो उन्हें मसीहा नहीं कहा जाता था और उनका जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, जो पूरी तरह से उन लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के विपरीत था। इसलिए वे ईश निंदा करने लगे और प्रभु यीशु का तिरस्कार करने लगे। प्रभु यीशु का विरोध करने और उनका अपमान करने के लिए वे अपने गलत दृष्टिकोण पर अड़े रहे कि "जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता है, तब तक तुम मसीह नहीं हो"। उनके पास ऐसा हृदय नहीं है जो सत्य की तलाश करे। अंत में, न केवल वे मसीहा का स्वागत करने में विफल रहे, बल्कि उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उन्होंने एक भयानक पाप किया और पूरे राष्ट्र को विनाश के अधीन कर दिया गया।

 

प्रभु यीशु मसीह लोगों के साथ संगति करता है

लेकिन सामरी स्त्री अलग थी। प्रभु यीशु की उसके साथ बातचीत के बाद, वह जान गयी कि प्रभु यीशु आने वाले मसीहा थे। इसलिए उसने प्रभु यीशु का अनुसरण किया। जब प्रभु ने पतरस, यूहन्ना, मत्ती, मरकुस और अन्य लोगों को बुलाया, तब भले ही वे यह नहीं जानते थे कि प्रभु यीशु मसीहा थे, लेकिन चूँकि उन्हें यीशु के उपदेशों में सत्य मिला, इसलिए दूसरों की बातें सुनने और अपनी आँखों देखे हाल के आधार पर प्रभु की आलोचना करने के बजाय, वे प्रभु का पालन करने और अनुसरण करने में सक्षम हुए। इसी प्रकार नतनएल भी तुरंत आश्वस्त हो गया था, उसने मान लिया कि प्रभु यीशु ही आने वाले मसीहा थे और जब उसने प्रभु यीशु को उसके हृदय के विचारों को कहते सुना तो उसने उनका अनुसरण किया। साथ ही, बहुत से लोगों ने प्रभु यीशु के उपदेश और उनके द्वारा व्यक्त किये गये सत्य जैसे कि ये पद:"मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17), "तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ताओं का आधार हैं" (मत्ती 22:37-40), आदि को सुनने के बाद और प्रभु यीशु के कर्मों: पाँच हज़ार लोगों को और दो मछलियों और पाँच रोटियों से खिलाना, हवा और समुद्र को शांत करना, एक वचन से मृत को पुनर्जीवित करना, आदि को देखने के बाद प्रभु यीशु का अनुसरण किया। ऊपर से, हम देख सकते हैं कि ये लोग अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा नहीं करते थे, और फरीसियों से बंधे नहीं थे। इसके बजाय, प्रभु की कथनी और करनी के माध्यम से, उन्होंने यह पहचाना कि प्रभु यीशु आने वाले मसीहा थे और इस प्रकार उनका अनुसरण किया। इस प्रकार उनकी नियति अन्य यहूदियों से काफी अलग होने कारण उन्होंने प्रभु का स्वागत किया।

 

यशायाह 55:8-9 में कहा गया है: "क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।" यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के कार्य की थाह नहीं पा सकता है। परमेश्वर बुद्धिमान और सर्वशक्तिमान हैं। वह हमारी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार अपना कार्य नहीं करते हैं। ठीक उसी तरह जब प्रभु यीशु आए थे, सभी लोगों ने सोचा था कि परमेश्वर का नाम मसीहा होना चाहिए, और वह महल में पैदा होना चाहिए। लेकिन, परमेश्वर के कार्य ने मनुष्य की अवधारणाओं पर बड़ा प्रहार किया। प्रभु यीशु को मसीहा नहीं कहा जाता था, और वह एक गौशाले में पैदा हुए थे। इसलिए हम अपने मन की कल्पनाओं के अनुसार परमेश्वर के कार्य का चित्रण नहीं कर सकते। ईसाई होने के नाते, हम परमेश्वर के शीघ्र लौटने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। यहूदियों की गलती को दोहराने से बचने के लिए हमें प्रभु का स्वागत किस तरह क्या करना चाहिए?

 

बीते वर्षों की याद करूं तो मैं सोचता रहा हूँ कि प्रभु बड़े धूम-धाम के साथ एक सफेद बादल पर सवार होकर लौटेंगे—स्वर्गदूतों की तुरहियाँ बजेंगी, और मृतक फिर जीवित हो जायेंगे। इसलिए इन वर्षों में, मैं अक्सर आकाश में बादलों को देखता और इंतजार करता था कि प्रभु एक सफेद बादल पर हमें स्वर्गिक घर ले जाने के लिए वापस लाएं। हालाँकि मेरे आस-पास के कुछ लोगों ने मुझे इस बात की गवाही दी है कि प्रभु यीशु ने वापस लौटकर वचनों को व्यक्त किया है, और परमेश्वर के भवन से शुरू होने वाले न्याय का कार्य किया है, फिर भी मैं खोज और जांच करने के लिए तैयार नहीं हूँ। नतीजतन, मैं उस दिन के लिए तरस रहा हूँ और इंतजार कर रहा हूँ जब वह एक सफेद बादल पर लौटेंगे। फिर भी, इतने वर्षों के बाद, न तो प्रभु आये हैं, न उन्होंने हमें उनसे मिलने के लिए हवा में उठाया है। अब जब मैं इस बारे में सोचता हूँ, तो क्या मैंने अपनी धारणाओं में परमेश्वर को इस तरह परिभाषित नहीं किया है कि कोई भी प्रभु यीशु जो सफेद बादल पर सवार होकर नहीं आते हैं वह एक झूठे मसीह हैं? इस तरह से प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा करते हुए, क्या मैं अभी भी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं में नहीं जी रहा हूँ?

 

जब मैं बाइबल पढ़ता हूँ, तो मैं प्रकाशितवाक्य में यह लिखा पाता हूँ: "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्‍वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूँगा" (प्रकाशितवाक्य 2:7), "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इन पदों से हम देख सकते हैं कि प्रभु की वापसी का स्वागत करने की कुंजी यह है कि हमें परमेश्वर की वाणी सुनने पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें उनके वचनों और उनके कार्य के माध्यम से जानने की कोशिश करनी चाहिए, जैसे कि बुद्धिमान कुंवारियाँ, जो दूल्हे की आवाज़ सुनकर उसका अभिवादन करने गयी थीं। क्या सामरी स्त्री ने प्रभु यीशु को उनके कथन से मसीहा के रूप में नहीं पहचाना था? इसके अलावा, यह उनकी कथनी और करनी के माध्यम से ही है कि प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले शिष्यों, जैसे कि पतरस, यूहन्ना, मत्ती और फिलिप्पुस, ने पाया कि प्रभु यीशु ही वो हैं जिनके पास अधिकार और शक्ति है, और इस प्रकार उन लोगों ने उनका अनुसरण किया। उन्होंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा करते हुए प्रभु को परिभाषित नहीं किया, बल्कि परमेश्वर की वाणी को सुनने का चुनाव किया, और अंत में, उन्होंने प्रभु यीशु के उद्धार को प्राप्त किया! इससे पता चलता है कि प्रभु की वापसी का स्वागत करने में परमेश्‍वर की वाणी सुनने पर ध्यान देना हमारे लिए बहुत महत्व रखता है!

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

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